Lifestyle: आज के ज़माने में अगर कोई हाई हील्स में पैर दर्द की शिकायत करे, टाइट जींस से परेशान हो या ब्रा की वायर चुभने का ज़िक्र करे, तो यह बिल्कुल आम बात है। लेकिन कुछ सदियों पहले फैशन की दुनिया इससे कहीं ज़्यादा खतरनाक और पीड़ादायक हुआ करती थी। जहां आज आराम और समावेशिता पर ज़ोर दिया जा रहा है, वहीं पहले के दौर में सुंदर दिखने की चाह में लोग अपनी सेहत तक दांव पर लगा देते थे। कुछ फैशन ट्रेंड तो इतने कठोर थे कि उन्होंने शरीर को स्थायी नुकसान तक पहुंचाया। आइए जानते हैं उन फैशन ट्रेंड्स के बारे में, जो कभी खूबसूरती का प्रतीक माने जाते थे लेकिन असल में स्वास्थ्य के लिए खतरा थे।
- कमर को तोड़ने वाला फैशन: टाइट लेसिंग और कॉर्सेट्स का दौर
- खूबसूरती में ज़हर घोलने वाले हरे कपड़े: आर्सेनिक ड्रेसेज़
- Lifestyle:सुंदर पैरों की कीमत: चीन में फुट बाइंडिंग की दर्दनाक परंपरा
- जब कपड़े बने मौत का जाल: क्रिनोलिन स्कर्ट्स की आग में मौतें
- खतरनाक खूबसूरती: बेलाडोना आई ड्रॉप्स से आंखों को नुकसान
- Lifestyle: चोपीन जूते और जानलेवा गिरावटें
- रॉयल लुक, घुटन भरा एहसास: एडवर्डियन कॉलर्स
कमर को तोड़ने वाला फैशन: टाइट लेसिंग और कॉर्सेट्स का दौर
16वीं से 19वीं शताब्दी के बीच महिलाओं में पतली कमर और घंटे के आकार जैसा शरीर पाने की होड़ लगी रहती थी। इसके लिए वे ऐसे कॉर्सेट पहनती थीं जो कमर को कसकर अंदर की ओर दबा देते थे। दिखने में यह फिगर परफेक्ट लगता था, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई बेहद दर्दनाक थी। इन कॉर्सेट्स के कारण फेफड़ों की जगह सिकुड़ जाती थी, सांस लेना मुश्किल हो जाता था और शरीर के आंतरिक अंगों पर दबाव पड़ता था। कई बार महिलाएं ऑक्सीजन की कमी से बेहोश तक हो जाती थीं।
खूबसूरती में ज़हर घोलने वाले हरे कपड़े: आर्सेनिक ड्रेसेज़
19वीं सदी में चमकदार हरे रंग के कपड़े बेहद लोकप्रिय हुए। लेकिन इनका राज़ था — आर्सेनिक। उस समय कपड़ों में चमकदार रंग लाने के लिए आर्सेनिक आधारित पिगमेंट का इस्तेमाल किया जाता था। दिखने में भले ये ड्रेस आकर्षक थीं, लेकिन लंबे समय तक त्वचा के संपर्क में रहने से यह ज़हर शरीर में घुस जाता था। इसका नतीजा होता था उल्टियां, त्वचा पर घाव और कई बार मौत तक। कहा जाता है कि विक्टोरियन घरों में घूमती कुछ ‘भूतिया कहानियों’ की जड़ें इन्हीं ज़हरीले कपड़ों में छिपी थीं।
Lifestyle:सुंदर पैरों की कीमत: चीन में फुट बाइंडिंग की दर्दनाक परंपरा
इंपीरियल चीन में महिलाओं के छोटे और नुकीले पैर स्त्रीत्व और सौंदर्य का प्रतीक माने जाते थे। इस आदर्श को पाने के लिए छोटी बच्चियों के पैर तोड़कर कसकर बांध दिए जाते थे, ताकि वे बड़े होकर “कमल जैसे पैर” दिखा सकें। इस प्रक्रिया से हड्डियां विकृत हो जाती थीं, दर्द जीवनभर साथ रहता था और चलना-फिरना मुश्किल हो जाता था। यह फैशन सिर्फ एक सौंदर्य मानक नहीं था, बल्कि महिलाओं को शारीरिक रूप से सीमित कर समाज में नियंत्रित रखने का एक तरीका भी था।
जब कपड़े बने मौत का जाल: क्रिनोलिन स्कर्ट्स की आग में मौतें
1800 के दशक में महिलाएं अपने स्कर्ट को चौड़ा और भव्य दिखाने के लिए क्रिनोलिन नाम की पिंजरे जैसी संरचना पहनती थीं। लेकिन ये स्कर्ट्स इतनी ज्वलनशील होती थीं कि ज़रा सी लापरवाही में आग पकड़ लेती थीं। कई महिलाओं ने सिर्फ इसलिए अपनी जान गंवाई क्योंकि उनकी स्कर्ट मोमबत्ती या आग के संपर्क में आ गई। हैरानी की बात यह है कि इन स्कर्ट्स की चौड़ाई इतनी अधिक होती थी कि महिलाएं दरवाजों से निकलने के लिए स्कर्ट को उठाना पड़ता था।
खतरनाक खूबसूरती: बेलाडोना आई ड्रॉप्स से आंखों को नुकसान
रिनेसां काल में बड़ी और फैली हुई पुतलियों को बेहद आकर्षक माना जाता था। इसके लिए महिलाएं बेलाडोना (डेडली नाइटशेड) नामक पौधे से बनी आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल करती थीं। इससे आंखों की पुतलियां फैल जाती थीं, लेकिन साथ ही धुंधलापन, भ्रम, तेज रोशनी से जलन और कई बार स्थायी अंधेपन का खतरा भी रहता था। उस समय कई महिलाएं घर के अंदर भी छाते लेकर घूमती थीं ताकि रोशनी आंखों को परेशान न करे।
Lifestyle: चोपीन जूते और जानलेवा गिरावटें
15वीं से 17वीं शताब्दी के यूरोप में महिलाएं चोपीन नामक ऊंचे प्लेटफॉर्म वाले जूते पहनती थीं। कुछ जूते तो 20 इंच से भी ऊंचे होते थे। इन्हें पहनना स्टेटस सिंबल माना जाता था, लेकिन चलना बेहद मुश्किल। कई महिलाएं गिरकर गंभीर रूप से घायल हो जाती थीं। अमीर घरानों में तो खास नौकर सिर्फ इसीलिए रखे जाते थे कि महिलाएं इन जूतों में चलते समय गिरें नहीं।
रॉयल लुक, घुटन भरा एहसास: एडवर्डियन कॉलर्स
एडवर्डियन काल में ऊंची, स्टार्च से सख्त की गई कॉलर पहनना शाही ठाठ-बाट की निशानी माना जाता था। लेकिन ये कॉलर गर्दन की हरकत को सीमित कर देती थीं, त्वचा पर जलन होती थी और मोमबत्ती या आग के पास खतरा बना रहता था। कुछ लोगों का कहना था कि इन कॉलर्स से पहनने वाले व्यक्ति में एक “राजसी” लेकिन दूरियों भरा भाव आ जाता था।
Disclaimer: यह लेख ऐतिहासिक तथ्यों और प्रामाणिक स्रोतों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी और मनोरंजन प्रदान करना है। इसे किसी स्वास्थ्य या ऐतिहासिक सलाह के रूप में न लिया जाए।